-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
नींद रातभर क्यों मुझे नहीं आती? मेरे जैसे तुच्छ आदमी के लिए यह एक यक्ष प्रश्न है क्योंकि बचपन से सुना करता था कि ऐसी बीमारियों पर बड़े लोगों का आधिपत्य है। ग्लोबल भाषा में कहें तो धनकुबेरों ने इस बीमारी का पेटेंट अपने नाम करा रखा है लिहाजा किसी से इसका जिक्र करना तक मुनासिब नहीं समझता। कहीं कोई मुझे बड़ा आदमी न समझ बैठे।
समस्या का समाधान खुद निकालने की गरज से जब नींद न आने की वजह तलाशने लगा तो पता लगा कि समस्या की जड़ में इन दिनों चल रही वो सियासत है जिसकी तुलना गुंडे किस्म के सड़कछाप आवारा छोकरों की उस शब्दावली से की जा सकती है जिसे तथाकथित सभ्रांत लोग गालियां कहते हैं।
एक कहावत है जो गाहे-बगाहे हिंदी प्रेमियों के मुंह से सुनी जाती है। कहावत कुछ यूं है कि ”अंग्रेज चले गए और औलाद छोड़ गए”। कहावत का मर्म आप भी समझ गये होंगे।
खैर, अब न राजे-रजवाड़े रहे और न उनकी शानो-शौकत। न रियासत रहीं, न विरासत। जो रह गई है वह है सियासत…और वो भी उस दर्जे की जिसका जिक्र मैं ऊपर कर ही चुका हूं।
रात को किसी न किसी टीवी न्यूज़ चैनल पर उस कार्यक्रम को देखकर बिस्तर पकड़ता हूं जिसे आम आदमी पैनल डिस्कशन कहता है। न्यूज़ चैनल वाले पहले रात 11 बजे बाद ही डरावने कार्यक्रम दिखाते थे लेकिन अब 9 बजे से ही शुरू हो जाते हैं। मेरी नींद उड़ने का यही कारण है।
जैसे-तैसे सोने की कोशिश करता हूं तो कोई न कोई सियासती बाजीगर आंखों में उतर आता है।
मजमे के बीच वह बोलता है- साहिबान…अब मैं आपको ऐसे-ऐसे खेल दिखाऊंगा कि आप दांतों तले उंगली दबाकर रह जायेंगे।
हां, तो जमूरे… सबसे पहले साहब लोगों को पलटी मारकर दिखा। दिखा कि एक पार्टी से दूसरी पार्टी तक कैसे पलक झपकते ही पहुंचा जा सकता है।
साहब लोग समझते हैं कि देश में कई पार्टियां हैं और कई नेता। सच तो यह है कि ढेर सारी पार्टियां और ढेर सारे नेता, एक ही थैले के चट्टे-बट्टे हैं।
कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा, लोजपा, तेदेपा, आप और बाप सरीखी जितनी भी पार्टियां दिखाई देती हैं, वह सब एक प्राण कई देह हैं। यानी सबका रूप भले ही अलग-अलग है किंतु रूपक एक ही है। सूरतें जुदा हैं, सीरतें एक हैं।
जमूरे वोट डालने मात्र का अधिकार प्राप्त इन साहिबान को बता कि सत्ता किसी को प्राप्त हो, सिंहासन पर कोई बैठे लेकिन शासन में हिस्सेदारी सबकी रहती है।
जमूरे…साहब लोगों को ये भी बता कि पापी पेट की खातिर इन्हें क्या-क्या नहीं करना पड़ता।
ये सत्ता पक्ष और विपक्ष का नाटक खेलते हैं। संसद में कभी शीतकालीन सत्र खेलते हैं तो कभी वर्षाकालीन। कभी-कभी तो संसद से सड़क तक खेलते हैं।
व्यापमं की तरह ये हर जगह व्याप्त हैं। ललित मोदी की तरह इनकी ललित कलाओं का फैलाव भारत से लंदन तक विस्तार लिए हुए है। इनके लिए सुषमा, वसुंधरा, जैटली से लेकर वाड्रा, प्रियंका व चिदंबरम तक सब समान हैं। ये जब चाहें और जिसे चाहें मोहरा बनाकर अपना खेल शुरू कर देते हैं। जनता की कमाई पर इनका संपूर्ण एकाधिकार है, सर्वथा हकदार हैं ये उसके। इसीलिए तो ये कभी सरकार के नाम से पुकारे जाते हैं तो कभी विपक्ष के नाम से किंतु हकीकत यह है कि सत्तापक्ष भी ये हैं और विपक्ष भी ये ही हैं।
ये जब तक चाहते हैं संसद चलने देते हैं और जब मन नहीं होता तब उसी को खेल का मैदान बना लेते हैं।
जमूरे… साहिबान और कद्रदानों को यह भी जानकारी दे कि उन्हें जो कुछ होता दिखाई देता है, वह उसका भ्रम मात्र है। एक्चुअली जो ये सब मिलकर करते हैं, वह तो दिखाई ही नहीं देता। समझदार थे अंग्रेज जो मीटिंग, ईटिंग और चीटिंग की पर्याप्त व्यवस्था कर गए।
आज पूरा देश इन्हीं तीन कार्यों में व्यस्त है। जो इनमें से किसी एक काम को भी नहीं कर रहा, उसे अरविंद केजरीवाल ठुल्ला नहीं मानते। केजरीवाल ने दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बाद दिल्ली और देश को बेशक कुछ और न दिया हो किंतु जिस तरह कपिल शर्मा ने अपने कॉमेडी शो से बाबाजी का ठुल्लू दिया, उसी तरह अरविंद केजरीवाल ने अपनी कॉमेडी सरकार से ‘ठुल्ला’ निकाल कर दिया है।
जहां तक सवाल राहुल गांधी का है तो जमूरे…साहिबानों को बता कि कुछ लोग जैसे कभी कुछ करने को पैदा नहीं होते, उसी तरह राहुल गांधी कभी बड़े होने को पैदा नहीं हुए। वह राहुल बाबा थे और राहुल बाबा ही रहेंगे।
कल की तो बात है जब सलमान खान की टिप्पणी पर उनके पिता सलीम खान को कहने पड़ा कि वह नासमझ है…प्लीज! उसकी बातों पर गौर न करें। राहुल और सलमान में एक बड़ी समानता है, दोनों ही अब तक पालने में झूल रहे हैं। उम्र का अर्धशतक लगा चुके लेकिन मिल्क चॉकलेट है कि मुंह से छूटती ही नहीं।
जमूरे…लोगों की प्रॉब्लम यह है कि वह नेता और अभिनेताओं के दीवानगी की हद तक मुरीद होते हैं। मीडिया की प्रॉब्लम यह है कि वह जो कुछ प्रसारित व प्रकाशित करता है, सब जनहित में करता है। कॉन्डोम के विज्ञापन से लेकर डीयो तक के विज्ञापन में जनहित निहित है।
गंडे, ताबीज तथा लॉकेट से लेकर तेल, साबुन और क्रीम तक…सबके विज्ञापन मीडिया जनहित में ही तो जारी करता है।
ठीक इसी प्रकार हर दिन किसी न किसी मुद्दे पर पैनल डिस्कशन कराना सबसे बड़ा पुण्यकार्य है। इससे जनता का ध्यान इधर-उधर नहीं भटकता। वो अपने नेताओं पर फोकस किये रहती है।
वो चैनल ही क्या, जो ब्रेन वॉश न कर सके। मोदी जी का एक महत्वपूर्ण मिशन है क्लीन इंडिया। न्यूज़ चैनल यही कर रहे हैं। पूरी तरह ब्रेन वॉश कर देते हैं।
यूं भी कहा जाता है कि गंदगी भी दिमाग की उपज है। यदि दिमाग खाली रहेगा तो कहीं गंदगी नजर नहीं आयेगी।
मेरा भी दिमाग न्यूज़ चैनल्स ने पूरी तरह खाली कर दिया है। ब्रेन वॉश कर दिया है।
पुरानी कहावत है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। उधर मैंने न्यूज़ चैनल पर पैनल डिस्कशन देखा और इधर दिमाग देश दुनिया से पूरी तरह खाली हो जाता है। रह जाते हैं तो शैतान रूपी वह नेता, जो मेरी नींद के दुश्मन हैं।
अगर आप भी नींद न आने की बीमारी से पीड़ित हैं तो किसी वैद्य, हकीम, डॉक्टर या झोलाछाप के पास जाने से पहले एकबार खुद अपने मर्ज पर गौर करें। कहीं आपकी नींद भी मेरी तरह इन नेताओं ने तो नहीं छीन ली।
आमीन…आमीन…आमीन!
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
नींद रातभर क्यों मुझे नहीं आती? मेरे जैसे तुच्छ आदमी के लिए यह एक यक्ष प्रश्न है क्योंकि बचपन से सुना करता था कि ऐसी बीमारियों पर बड़े लोगों का आधिपत्य है। ग्लोबल भाषा में कहें तो धनकुबेरों ने इस बीमारी का पेटेंट अपने नाम करा रखा है लिहाजा किसी से इसका जिक्र करना तक मुनासिब नहीं समझता। कहीं कोई मुझे बड़ा आदमी न समझ बैठे।
समस्या का समाधान खुद निकालने की गरज से जब नींद न आने की वजह तलाशने लगा तो पता लगा कि समस्या की जड़ में इन दिनों चल रही वो सियासत है जिसकी तुलना गुंडे किस्म के सड़कछाप आवारा छोकरों की उस शब्दावली से की जा सकती है जिसे तथाकथित सभ्रांत लोग गालियां कहते हैं।
एक कहावत है जो गाहे-बगाहे हिंदी प्रेमियों के मुंह से सुनी जाती है। कहावत कुछ यूं है कि ”अंग्रेज चले गए और औलाद छोड़ गए”। कहावत का मर्म आप भी समझ गये होंगे।
खैर, अब न राजे-रजवाड़े रहे और न उनकी शानो-शौकत। न रियासत रहीं, न विरासत। जो रह गई है वह है सियासत…और वो भी उस दर्जे की जिसका जिक्र मैं ऊपर कर ही चुका हूं।
रात को किसी न किसी टीवी न्यूज़ चैनल पर उस कार्यक्रम को देखकर बिस्तर पकड़ता हूं जिसे आम आदमी पैनल डिस्कशन कहता है। न्यूज़ चैनल वाले पहले रात 11 बजे बाद ही डरावने कार्यक्रम दिखाते थे लेकिन अब 9 बजे से ही शुरू हो जाते हैं। मेरी नींद उड़ने का यही कारण है।
जैसे-तैसे सोने की कोशिश करता हूं तो कोई न कोई सियासती बाजीगर आंखों में उतर आता है।
मजमे के बीच वह बोलता है- साहिबान…अब मैं आपको ऐसे-ऐसे खेल दिखाऊंगा कि आप दांतों तले उंगली दबाकर रह जायेंगे।
हां, तो जमूरे… सबसे पहले साहब लोगों को पलटी मारकर दिखा। दिखा कि एक पार्टी से दूसरी पार्टी तक कैसे पलक झपकते ही पहुंचा जा सकता है।
साहब लोग समझते हैं कि देश में कई पार्टियां हैं और कई नेता। सच तो यह है कि ढेर सारी पार्टियां और ढेर सारे नेता, एक ही थैले के चट्टे-बट्टे हैं।
कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा, लोजपा, तेदेपा, आप और बाप सरीखी जितनी भी पार्टियां दिखाई देती हैं, वह सब एक प्राण कई देह हैं। यानी सबका रूप भले ही अलग-अलग है किंतु रूपक एक ही है। सूरतें जुदा हैं, सीरतें एक हैं।
जमूरे वोट डालने मात्र का अधिकार प्राप्त इन साहिबान को बता कि सत्ता किसी को प्राप्त हो, सिंहासन पर कोई बैठे लेकिन शासन में हिस्सेदारी सबकी रहती है।
जमूरे…साहब लोगों को ये भी बता कि पापी पेट की खातिर इन्हें क्या-क्या नहीं करना पड़ता।
ये सत्ता पक्ष और विपक्ष का नाटक खेलते हैं। संसद में कभी शीतकालीन सत्र खेलते हैं तो कभी वर्षाकालीन। कभी-कभी तो संसद से सड़क तक खेलते हैं।
व्यापमं की तरह ये हर जगह व्याप्त हैं। ललित मोदी की तरह इनकी ललित कलाओं का फैलाव भारत से लंदन तक विस्तार लिए हुए है। इनके लिए सुषमा, वसुंधरा, जैटली से लेकर वाड्रा, प्रियंका व चिदंबरम तक सब समान हैं। ये जब चाहें और जिसे चाहें मोहरा बनाकर अपना खेल शुरू कर देते हैं। जनता की कमाई पर इनका संपूर्ण एकाधिकार है, सर्वथा हकदार हैं ये उसके। इसीलिए तो ये कभी सरकार के नाम से पुकारे जाते हैं तो कभी विपक्ष के नाम से किंतु हकीकत यह है कि सत्तापक्ष भी ये हैं और विपक्ष भी ये ही हैं।
ये जब तक चाहते हैं संसद चलने देते हैं और जब मन नहीं होता तब उसी को खेल का मैदान बना लेते हैं।
जमूरे… साहिबान और कद्रदानों को यह भी जानकारी दे कि उन्हें जो कुछ होता दिखाई देता है, वह उसका भ्रम मात्र है। एक्चुअली जो ये सब मिलकर करते हैं, वह तो दिखाई ही नहीं देता। समझदार थे अंग्रेज जो मीटिंग, ईटिंग और चीटिंग की पर्याप्त व्यवस्था कर गए।
आज पूरा देश इन्हीं तीन कार्यों में व्यस्त है। जो इनमें से किसी एक काम को भी नहीं कर रहा, उसे अरविंद केजरीवाल ठुल्ला नहीं मानते। केजरीवाल ने दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बाद दिल्ली और देश को बेशक कुछ और न दिया हो किंतु जिस तरह कपिल शर्मा ने अपने कॉमेडी शो से बाबाजी का ठुल्लू दिया, उसी तरह अरविंद केजरीवाल ने अपनी कॉमेडी सरकार से ‘ठुल्ला’ निकाल कर दिया है।
जहां तक सवाल राहुल गांधी का है तो जमूरे…साहिबानों को बता कि कुछ लोग जैसे कभी कुछ करने को पैदा नहीं होते, उसी तरह राहुल गांधी कभी बड़े होने को पैदा नहीं हुए। वह राहुल बाबा थे और राहुल बाबा ही रहेंगे।
कल की तो बात है जब सलमान खान की टिप्पणी पर उनके पिता सलीम खान को कहने पड़ा कि वह नासमझ है…प्लीज! उसकी बातों पर गौर न करें। राहुल और सलमान में एक बड़ी समानता है, दोनों ही अब तक पालने में झूल रहे हैं। उम्र का अर्धशतक लगा चुके लेकिन मिल्क चॉकलेट है कि मुंह से छूटती ही नहीं।
जमूरे…लोगों की प्रॉब्लम यह है कि वह नेता और अभिनेताओं के दीवानगी की हद तक मुरीद होते हैं। मीडिया की प्रॉब्लम यह है कि वह जो कुछ प्रसारित व प्रकाशित करता है, सब जनहित में करता है। कॉन्डोम के विज्ञापन से लेकर डीयो तक के विज्ञापन में जनहित निहित है।
गंडे, ताबीज तथा लॉकेट से लेकर तेल, साबुन और क्रीम तक…सबके विज्ञापन मीडिया जनहित में ही तो जारी करता है।
ठीक इसी प्रकार हर दिन किसी न किसी मुद्दे पर पैनल डिस्कशन कराना सबसे बड़ा पुण्यकार्य है। इससे जनता का ध्यान इधर-उधर नहीं भटकता। वो अपने नेताओं पर फोकस किये रहती है।
वो चैनल ही क्या, जो ब्रेन वॉश न कर सके। मोदी जी का एक महत्वपूर्ण मिशन है क्लीन इंडिया। न्यूज़ चैनल यही कर रहे हैं। पूरी तरह ब्रेन वॉश कर देते हैं।
यूं भी कहा जाता है कि गंदगी भी दिमाग की उपज है। यदि दिमाग खाली रहेगा तो कहीं गंदगी नजर नहीं आयेगी।
मेरा भी दिमाग न्यूज़ चैनल्स ने पूरी तरह खाली कर दिया है। ब्रेन वॉश कर दिया है।
पुरानी कहावत है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। उधर मैंने न्यूज़ चैनल पर पैनल डिस्कशन देखा और इधर दिमाग देश दुनिया से पूरी तरह खाली हो जाता है। रह जाते हैं तो शैतान रूपी वह नेता, जो मेरी नींद के दुश्मन हैं।
अगर आप भी नींद न आने की बीमारी से पीड़ित हैं तो किसी वैद्य, हकीम, डॉक्टर या झोलाछाप के पास जाने से पहले एकबार खुद अपने मर्ज पर गौर करें। कहीं आपकी नींद भी मेरी तरह इन नेताओं ने तो नहीं छीन ली।
आमीन…आमीन…आमीन!
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
No comments:
Post a Comment