यूं तो समूचे सूबे में कानून-व्यवस्था की बदहाली के उदाहरण हर रोज सामने आते हैं लेकिन यदि बात करें सिर्फ विश्व विख्यात धार्मिक जनपद मथुरा की तो ऐसा लगता है कि यहां कानून-व्यवस्था भी ”समाजवादी” हो गई है।
मसलन…जाकी रही भावना जैसी। जिसे अच्छी समझनी हो, वो अच्छी समझ ले और जिसे बदहाल समझनी हो, वो बदहाल समझ ले। इस मामले में अभिव्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता है।
वैसे आम आदमी जो न समाजवादी है और न बहुजन समाजी है, न कांग्रेसी है और न भाजपायी है, न रालोद का वोटर है और न वामपंथी है…उसके अनुसार यहां कानून-व्यवस्था अब केवल एक ऐसा मुहावरा है जिसका इस्तेमाल अधिकारीगण अपनी सुविधा अनुसार करते रहते हैं।
कृष्ण की जन्मस्थली में तैनात होने वाले अधिकारियों को यह सुविधा स्वत: सुलभ हो जाती है क्योंकि यहां नेता और पत्रकार केवल दर्शनीय हुंडी की तरह हैं। अधिकांश नेता और पत्रकारों का मूल कर्म दलाली और मूल धर्म चापलूसी बन चुका है।
चोरी, डकैती, हत्या, लूट, बलात्कार, बलवा जैसे तमाम अपराध हर दिन होने के बावजूद मथुरा के नेता और पत्रकार अपने मूल कर्म व मूल धर्म को निभाना नहीं भूलते।
कहने को यहां सत्ताधारी समाजवादी पार्टी की एक जिला इकाई भी है और उसके पदाधिकारी भी हैं लेकिन उनका कानून-व्यवस्था से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं।
दरअसल वो कन्फ्यूज हैं कि कानून-व्यवस्था के मामले में किसकी परिभाषा को उचित मानकर चलें।
जैसे प्रदेश पुलिस के मुखिया कहते हैं कि कानून-व्यवस्था नि:संदेह संतोषजनक नहीं है। पार्टी के मुखिया का भी यही मत है। वो कहते हैं कि यदि आज की तारीख में चुनाव हो जाएं तो पार्टी निश्चित हार जायेगी। उनके लघु भ्राता प्रोफेसर रामगोपाल की मानें तो स्थिति इतनी बुरी भी नहीं है जितनी प्रचारित की जा रही है। जबकि ”लिखा-पढ़ी” में मुख्यमंत्री पद संभाले बैठे अखिलेश यादव का कहना है कि उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था उत्तम है और यहां का पुलिस-प्रशासन बहुत अच्छा काम कर रहा है। दूसरे राज्यों से तो बहुत ही बेहतर परफॉरमेंस है उसकी।
ऐसे में किसकी परिभाषा को सही माना जाए और किसे गलत साबित किया जाए, यह एक बड़ी समस्या है।
मथुरा में एक पूर्व मंत्री के घर चोरी होती है तो कहा जाता है कि सुरक्षा बढ़वाने के लिए ऐसा प्रचार किया गया है। व्यापारी के यहां डकैती पड़ती है तो बता दिया जाता है कि पुराने परिचित ने डाली है। समय मिलने दो, पकड़ भी लेंगे। हाईवे पर वारदात होती है तो अगली वारदात का इंतजार इसलिए करना पड़ता है जिससे पता लग सके कि अपराधियों की कार्यप्रणाली है क्या। वो हरियाणा से आये थे या राजस्थान से। यह भी संभव है कि उनका राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से सीधा कनैक्शन हो।
हां, इस बीच कुछ उचक्के टाइप के बदमाश पकड़ कर गुड वर्क कर लिया जाता है जिसे स्थानीय मीडिया पूरा कवरेज देकर साबित कर देता है कि मथुरा का पुलिस-प्रशासन निठल्ला चिंतन नहीं कर रहा। साथ में काम भी कर रहा है। एक्टिव है।
थोड़े ही दिन पहले की बात है जब मथुरा पुलिस की स्वाट टीम का बड़ा कारनामा जाहिर हुआ। बिना काम किए वैसा कारनामा कर पाना संभव था क्या।
स्वाट टीम के कारनामे ने साबित कर दिया कि वह दिन-रात काम कर रही है। यह बात अलग है कि वह काम किसके लिए और क्यों कर रही है। इस बात का जवाब देना न स्वाट टीम के लिए जरूरी है और न उनके लिए जिनके मातहत वह काम करती है। जांच चल रही है…नतीजा निकलेगा तो बता दिया जायेगा। नहीं निकला तो आगे देखा जायेगा।
आज यहां एसएसपी डॉ. राकेश सिंह हैं, इनसे पहले मंजिल सैनी थीं। उनसे भी पहले नितिन तिवारी थे। अधिकारी आते-जाते रहते हैं, कानून-व्यवस्था जस की तस रहती है। अधिकारी अस्थाई हैं, कानून-व्यवस्था स्थाई है।
मथुरा में हर अधिकारी सेवाभाव के साथ आता है। कृष्ण की पावन जन्मभूमि पर मिली तैनाती से वह धन्य हो जाता है। उसे समस्त ब्रजवासियों और ब्रजभूमि में आने वाले लोगों के अंदर कृष्णावतार दिखाई देने लगता है।
कृष्णावतार पर कानून का उपयोग करके वह इहिलोक और परलोक नहीं बिगाड़ना चाहता। बकौल मुलायम सिंह कृष्ण भी तो समाजवादी थे। यादव थे…इसका मतलब समाजवादी थे।
यहां कहा भी जाता है कि सभी भूमि गोपाल की। जब सब गोपाल का है तो गोपालाओं का क्या दोष। वह तो समाजवादी कानून के हिसाब से ही चलेंगे ना।
कृष्ण की भूमि पर तैनाती पाकर उसकी भक्ति में लीन अधिकारी इस सत्य से वाकिफ हो जाते हैं कि एक होता है कानून…और एक होता है समाजवादी कानून।
समाजवादी कानून सबको बराबरी का दर्जा देता है। लुटने वाले को भी और लूटने वाले को भी। पिटने वाले को भी और पीटने वाले को भी।
कागजी घोड़े सदा दौड़ते रहे हैं और सदा दौड़ते रहेंगे। बाकी अदालतें हैं न। वो भी तो देखेंगी कि कानून क्या है और व्यवस्था क्या है। कानून समाजवादी है और व्यवस्था मुलायमवादी है। चार लोग रेप नहीं कर सकते, इस सत्य से पर्दा हर कोई नहीं उठा सकता। पता नहीं ये गैंगरेप जैसा घिनौना शब्द किस मूर्ख ने ईजाद किया और किसने कानून का जामा पहना दिया।
उत्तर प्रदेश ऐसे कानून को स्वीकार नहीं करता। नेताजी को रेप स्वीकार है, रेपिस्ट स्वीकार हैं…गलती हो जाती है किंतु गैंगरेप स्वीकार नहीं क्योंकि वह गलती से भी नहीं किया जा सकता। संभव ही नहीं है।
ठीक उसी तरह जैसे कानून-व्यवस्था की बदहाली संभव नहीं है। वह कुछ गैर समाजवादी विरोधी दलों के दिमाग की उपज है। उनके द्वारा किया जाने वाला दुष्प्रचार है।
कानून-व्यवस्था कैसे बदहाल हो सकती है। वो बदहाल कर तो सकती है, खुद बदहाल हो नहीं सकती।
-लीजेंड न्यूज़
मसलन…जाकी रही भावना जैसी। जिसे अच्छी समझनी हो, वो अच्छी समझ ले और जिसे बदहाल समझनी हो, वो बदहाल समझ ले। इस मामले में अभिव्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता है।
वैसे आम आदमी जो न समाजवादी है और न बहुजन समाजी है, न कांग्रेसी है और न भाजपायी है, न रालोद का वोटर है और न वामपंथी है…उसके अनुसार यहां कानून-व्यवस्था अब केवल एक ऐसा मुहावरा है जिसका इस्तेमाल अधिकारीगण अपनी सुविधा अनुसार करते रहते हैं।
कृष्ण की जन्मस्थली में तैनात होने वाले अधिकारियों को यह सुविधा स्वत: सुलभ हो जाती है क्योंकि यहां नेता और पत्रकार केवल दर्शनीय हुंडी की तरह हैं। अधिकांश नेता और पत्रकारों का मूल कर्म दलाली और मूल धर्म चापलूसी बन चुका है।
चोरी, डकैती, हत्या, लूट, बलात्कार, बलवा जैसे तमाम अपराध हर दिन होने के बावजूद मथुरा के नेता और पत्रकार अपने मूल कर्म व मूल धर्म को निभाना नहीं भूलते।
कहने को यहां सत्ताधारी समाजवादी पार्टी की एक जिला इकाई भी है और उसके पदाधिकारी भी हैं लेकिन उनका कानून-व्यवस्था से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं।
दरअसल वो कन्फ्यूज हैं कि कानून-व्यवस्था के मामले में किसकी परिभाषा को उचित मानकर चलें।
जैसे प्रदेश पुलिस के मुखिया कहते हैं कि कानून-व्यवस्था नि:संदेह संतोषजनक नहीं है। पार्टी के मुखिया का भी यही मत है। वो कहते हैं कि यदि आज की तारीख में चुनाव हो जाएं तो पार्टी निश्चित हार जायेगी। उनके लघु भ्राता प्रोफेसर रामगोपाल की मानें तो स्थिति इतनी बुरी भी नहीं है जितनी प्रचारित की जा रही है। जबकि ”लिखा-पढ़ी” में मुख्यमंत्री पद संभाले बैठे अखिलेश यादव का कहना है कि उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था उत्तम है और यहां का पुलिस-प्रशासन बहुत अच्छा काम कर रहा है। दूसरे राज्यों से तो बहुत ही बेहतर परफॉरमेंस है उसकी।
ऐसे में किसकी परिभाषा को सही माना जाए और किसे गलत साबित किया जाए, यह एक बड़ी समस्या है।
मथुरा में एक पूर्व मंत्री के घर चोरी होती है तो कहा जाता है कि सुरक्षा बढ़वाने के लिए ऐसा प्रचार किया गया है। व्यापारी के यहां डकैती पड़ती है तो बता दिया जाता है कि पुराने परिचित ने डाली है। समय मिलने दो, पकड़ भी लेंगे। हाईवे पर वारदात होती है तो अगली वारदात का इंतजार इसलिए करना पड़ता है जिससे पता लग सके कि अपराधियों की कार्यप्रणाली है क्या। वो हरियाणा से आये थे या राजस्थान से। यह भी संभव है कि उनका राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से सीधा कनैक्शन हो।
हां, इस बीच कुछ उचक्के टाइप के बदमाश पकड़ कर गुड वर्क कर लिया जाता है जिसे स्थानीय मीडिया पूरा कवरेज देकर साबित कर देता है कि मथुरा का पुलिस-प्रशासन निठल्ला चिंतन नहीं कर रहा। साथ में काम भी कर रहा है। एक्टिव है।
थोड़े ही दिन पहले की बात है जब मथुरा पुलिस की स्वाट टीम का बड़ा कारनामा जाहिर हुआ। बिना काम किए वैसा कारनामा कर पाना संभव था क्या।
स्वाट टीम के कारनामे ने साबित कर दिया कि वह दिन-रात काम कर रही है। यह बात अलग है कि वह काम किसके लिए और क्यों कर रही है। इस बात का जवाब देना न स्वाट टीम के लिए जरूरी है और न उनके लिए जिनके मातहत वह काम करती है। जांच चल रही है…नतीजा निकलेगा तो बता दिया जायेगा। नहीं निकला तो आगे देखा जायेगा।
आज यहां एसएसपी डॉ. राकेश सिंह हैं, इनसे पहले मंजिल सैनी थीं। उनसे भी पहले नितिन तिवारी थे। अधिकारी आते-जाते रहते हैं, कानून-व्यवस्था जस की तस रहती है। अधिकारी अस्थाई हैं, कानून-व्यवस्था स्थाई है।
मथुरा में हर अधिकारी सेवाभाव के साथ आता है। कृष्ण की पावन जन्मभूमि पर मिली तैनाती से वह धन्य हो जाता है। उसे समस्त ब्रजवासियों और ब्रजभूमि में आने वाले लोगों के अंदर कृष्णावतार दिखाई देने लगता है।
कृष्णावतार पर कानून का उपयोग करके वह इहिलोक और परलोक नहीं बिगाड़ना चाहता। बकौल मुलायम सिंह कृष्ण भी तो समाजवादी थे। यादव थे…इसका मतलब समाजवादी थे।
यहां कहा भी जाता है कि सभी भूमि गोपाल की। जब सब गोपाल का है तो गोपालाओं का क्या दोष। वह तो समाजवादी कानून के हिसाब से ही चलेंगे ना।
कृष्ण की भूमि पर तैनाती पाकर उसकी भक्ति में लीन अधिकारी इस सत्य से वाकिफ हो जाते हैं कि एक होता है कानून…और एक होता है समाजवादी कानून।
समाजवादी कानून सबको बराबरी का दर्जा देता है। लुटने वाले को भी और लूटने वाले को भी। पिटने वाले को भी और पीटने वाले को भी।
कागजी घोड़े सदा दौड़ते रहे हैं और सदा दौड़ते रहेंगे। बाकी अदालतें हैं न। वो भी तो देखेंगी कि कानून क्या है और व्यवस्था क्या है। कानून समाजवादी है और व्यवस्था मुलायमवादी है। चार लोग रेप नहीं कर सकते, इस सत्य से पर्दा हर कोई नहीं उठा सकता। पता नहीं ये गैंगरेप जैसा घिनौना शब्द किस मूर्ख ने ईजाद किया और किसने कानून का जामा पहना दिया।
उत्तर प्रदेश ऐसे कानून को स्वीकार नहीं करता। नेताजी को रेप स्वीकार है, रेपिस्ट स्वीकार हैं…गलती हो जाती है किंतु गैंगरेप स्वीकार नहीं क्योंकि वह गलती से भी नहीं किया जा सकता। संभव ही नहीं है।
ठीक उसी तरह जैसे कानून-व्यवस्था की बदहाली संभव नहीं है। वह कुछ गैर समाजवादी विरोधी दलों के दिमाग की उपज है। उनके द्वारा किया जाने वाला दुष्प्रचार है।
कानून-व्यवस्था कैसे बदहाल हो सकती है। वो बदहाल कर तो सकती है, खुद बदहाल हो नहीं सकती।
-लीजेंड न्यूज़
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