Sunday 14 February 2021

अपने प्रिय मित्र कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी के नाम एक खुला खत


 कांग्रेस के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी और मेरा रिश्‍ता यूं तो ठीक वैसा ही है जैसा मेरा देश के दूसरे नेताओं से है किंतु एक मामले में वो मेरे लिए अन्‍य नेताओं से अलग हैं।

दरअसल, मैं उन्‍हें अपना मित्र मानता हूं और ये मित्रता पूरी तरह एकतरफा है। अब है तो है। इसमें कोई कर भी क्‍या सकता है। दिल के सौदे कुछ ऐसे ही हुआ करते हैं।
इसी ‘दिल-लगी’ के चलते मैं आज उन्‍हें एक खुला खत लिखने का दुस्‍साहस कर पा रहा हूं। बिना ये सोचे-समझे कि इसका अंजाम क्‍या होगा।
प्रिय मित्र राहुल जी, जैसा कि आप जानते और समझते ही होंगे कि हमारे देश में बिन मांगे सलाह देने की परंपरा बहुत पुरानी है इसलिए आज मैं भी आपको एक सलाह दे रहा हूं। ज़ाहिर है कि इसे मानना या न मानना आपके अपने बुद्धि-विवेक पर निर्भर करता है। मतलब आपको जो उचित लगे, वही ‘हश्र’ आप मेरी सलाह का कर सकते हैं।
सलाह ये है कि लिखा-पढ़ी में कांग्रेस के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष का पदभार पुन: आपके कंधों पर डाल दिया जाए, उससे पहले आप एक ‘डीम्‍ड यूनिवर्सिटी’ स्‍थापित कर खुद को उसका कुलाधिपति घोषित कर दें। आप चाहें तो रणदीप सुरजेवाला को उसका कुलपति नियुक्‍त कर सकते हैं।
फैकल्‍टी के रूप में आपके पास पार्टी प्रवक्‍ताओं की ऐसी फौज पहले से मौजूद है जो आपके श्रीमुख से निकलने वाले प्रत्‍येक शब्‍द को तत्‍काल लपक कर न सिर्फ उसका विच्‍छेदन आपकी इच्‍छानुसार करने की योग्‍यता रखती है बल्‍कि कई बार उससे भी परे जाकर यह साबित करती है कि वो आपको, आपसे भी अधिक अच्‍छी तरह समझ रही है। इतना अच्‍छी तरह, जितना कि आपकी मॉम या बहिन भी नहीं समझ पातीं।
मेरी आपसे गुज़ारिश है कि इस यूनिवर्सिटी में सिर्फ और सिर्फ आपके अपने द्वारा गढ़ी गई राजनीति के गुर सिखाए जाएं, कोई दूसरा विषय न हो।
मसलन मामला कोई भी हो, उसे किसी भी तरह एक ही व्‍यक्‍ति या एक ही समूह पर कैसे केन्‍द्रित किया जा सकता है। खेत की बात को खलिहान की ओर, और खलिहान की बात को चीन तथा पाकिस्‍तान की ओर कैसे मोड़ा जा सकता है।
चूंकि आपके पास गुजरात के मुख्‍यमंत्री तथा देश के प्रधानमंत्री को किस्‍म-किस्‍म के अपशब्‍द कहने का एक लंबा अनुभव है इसलिए उस यूनिवर्सिटी में आपके द्वारा ईज़ाद किए गए ‘अपशब्‍दों’ का इस्‍तेमाल करने की विशेष ट्रेनिंग का इंतजाम किया जाए ताकि कांग्रेस सहित बाकी दूसरी पार्टियों के भावी नेताओं को राजनीति में ओछे हथकंडे अपनाने के तौर-तरीके सीखने अन्‍यत्र न जाना पड़े। आप चाहें तो उसकी फीस अतिरिक्‍त रख सकते हैं।
‘नेहरू-गांधी परिवार’ की राजनीतिक विरासत संभालने को आपके बाद वाली पीढ़ी में फिलहाल आपकी बहिन प्रियंका के ही बच्‍चे दिखाई देते हैं इसलिए भी जरूरी है कि वो आपके कटु लहजे को सहेजकर रख सकें और आगे चलकर यह लहज़ा उनके काम आ सके।
कांग्रेस को एकमात्र नेहरू-गांधी परिवार की ‘थाती’ मानने के कारण कोई अन्‍य कांग्रेसी इस गुरुत्तर भार को उठाने की योग्‍यता शायद ही हासिल कर सके इसलिए अति आवश्‍यक है कि समय रहते आपकी विधा को आपके भांजे-भांजी बखूबी प्राप्‍त कर सकें। कांग्रेस को कागजों में लपेटकर उसे अतीत बना देने के लिए ये ट्रांसफॉरमेशन अत्‍यंत जरूरी है, अन्‍यथा आपके ‘अपशब्‍द’ अनुपयोगी रह जाएंगे।
राहुल जी…! जिस प्रकार आपने संसद के अंदर कभी ‘आई व‍िंंकिंग’ करके तो संसद के बाहर अध्‍यादेश फाड़कर कीर्तिमान स्‍थापित किए हैं, उनका भी कोई सानी नहीं लिहाज़ा नेताओं की आने वाली खेप को इस कला में दक्ष करने का भी मुकम्‍मल बंदोबस्‍त आप अपनी यूनिवर्सिर्टी में कर दें तो देश पर आपकी महती कृपा होगी तथा आने वाली नस्‍लें हमेशा आपके प्रति इस कार्य के लिए कृतज्ञ रहेंगी।
यकीन मानिए कि आपके पूज्‍य पूर्वजों स्‍व. जवाहर लाल नेहरू, स्‍व. श्रीमती इंदिरा गांधी एवं स्‍व. श्री राजीव गांधी को ‘भारत रत्‍न’ चाहे जिन कारणों से मिला हो किंतु आपके लिए देश के इस सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मान की व्‍यवस्‍था आपके इन्‍हीं कारनामों के कारण की जाएगी क्‍योंकि कभी प्रधानमंत्री न बनने का इंतजाम आप खुद अपने लिए लगातार कर ही रहे हैं।
और अंत में केवल यही कहूंगा कि ‘मोदी है तो मुमकिन’ है के नारे को जितना सार्थक आपने किया है, उतना शायद ही कोई दूसरा कर सके।
बस मुझे चिंता है तो इस बात की कि मोदी और भाजपा को अगले कई दशकों तक सत्ता सौंपे रहने की इस अपनी व्‍यवस्‍था में आप पता नहीं स्‍वाभाविक नींद की अवस्‍था तक पहुंच पाते होंगे या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि आपको उसके लिए भी कोई अन्‍य ‘कारस्‍तानी’ करनी पड़ रही हो।
यदि ऐसा है तो आप बाकायदा एक माला लेकर अपनी चारपाई के पाये से बांध लें और नींद न आने की स्‍थिति में उस माला पर ‘मोदी नाम केवलम्’ का जाप यथोचित अपशब्‍दों के साथ करें। उस समय आप वो अपशब्‍द भी इस्‍तेमाल कर सकते हैं जिन्‍हें हम जैसे मामूली लोग अपनी भाषा में ‘गालियां’ कहते हैं। यकीन मानिए, आपको बहुत राहत मिलेगी और आप चैन की नींद सो सकेंगे।
हो सकता है कि इस आखिरी सलाह को मान लेने पर आपको सर्वाजनिक रूप से मोदी के सम्‍मान में उन शब्‍दों का प्रयोग न करना पड़े जिनके लिए आप कुख्‍यात हो चुके हैं और जो न सिर्फ आपके करियर बल्‍कि कांग्रेस के लिए भी कब्र खोदने का काम कर रहे हैं।
और हां, आप मेरी ये सलाह मान लेने के बावजूद आई व‍िंंकिंग सहित उन सभी इशारों का उपयोग करने को स्‍वतंत्र हैं जिन्‍हें ‘मैंगो पीपल’ छिछोरों के लिए आरक्षित मान बैठा है। आमीन!
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

Sunday 7 February 2021

70 साल में पहली बार क‍िसानों का भोलापन… “सबसे भले वे मूढ़, जिन्हें न व्यापे जगत गति”


 

नए कृषि कानूनों को लेकर राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर आंदोलनरत किसानों की ‘ये वैरायटी’ कितनी भोली है या कितनी चालाक, इसका इल्‍म तो फिलहाल नहीं हो पाया है… अलबत्ता इतना जरूर पता लग चुका है कि ‘उद्भट विद्वानों’ से भरे विपक्ष में कई नेता इतने ‘भोले’ हैं कि उन्‍हें ‘जगत गति’ व्‍याप ही नहीं रही।

इन नेताओं के भोलेपन का अंदाज आप इस बात से लगा सकते हैं कि मोदी सरकार नए कानूनों को खारिज़ न करके खुद अपनी रुख़सती का मुकम्‍मल इंतजाम कर रही है और विपक्ष इस बात पर आमादा है कि सरकार अपनी गलती दुरुस्‍त करके 2024 में भी जीतने की पक्‍की व्‍यवस्‍था कर ले।
‘पप्‍पू’ का पर्यायवाची शब्‍द हालांकि किसी शब्‍दकोश में ढूंढ़े नहीं मिला लेकिन ऐसा विश्‍वास है कि यदि इसका कोई पर्यायवाची होता तो निश्‍चित ही ऐसे ही ‘भोलेपन’ को सार्थक करता हुआ होता जैसे भोलेपन का मुजाहिरा विपक्षी नेता कर रहे हैं।
‘पप्‍पू’ ही क्‍यों, ‘टीपू’ और ‘जीतू’ से लेकर ‘पप्‍पी’ व ‘मीतू’ तक का पर्यायवाची यही होता क्‍योंकि सबकी क्रिया एक जैसी है। वैसे तमाम विपक्षी नेताओं के भोलेपन ने यह भी साबित कर दिया है कि ‘भोलेपन’ का पेटेंट किसी एक पार्टी अथवा किसी एक नेता के पास नहीं है बल्‍कि देश भरा पड़ा है ऐसे ‘भोले-भाले’ नेताओं तथा उनके अनुकरणीय नुमाइंदों से।
जरा विचार कीजिए कि यदि ये नहीं होता तो मोदी सरकार के लिए ‘आत्‍मघाती’ साबित होने जा रहे नए कृषि कानूनों से पीछे हटने की सलाह विपक्ष क्‍यों देता।
उसे तो खुश होना चाहिए था कि अब 2024 में उसे सत्ता सौंपने की व्‍यवस्‍था भाजपा के नेतृत्‍व वाली सरकार ने खुद-ब-खुद कर दी।
सच पूछो तो दुख होता है विपक्षी नेताओं के ऐसे भोलेपन पर, दया आती है उनकी इतनी सिधाई पर कि जिस भाजपा ने 2014 से उसे कहीं का नहीं छोड़ा, उसी के हित में डंडा-झंडा लेकर खड़े हो गए हैं।
बल, बुद्धि, विद्या सब जाया कर रहे हैं कि मोदी सरकार किसी तरह कृषि कानून वापस ले ले।
इन मासूम नेताओं को कोई यह समझाने वाला भी नहीं कि भाई… एकबार को मान लो कि यदि मोदी सरकार ने उनकी कही कर दी और अपने कदम खींच लिए तो सरकार से किसानों का बैर खत्‍म समझो, और बैर खत्‍म हुआ नहीं कि ‘एकबार फिर मोदी सरकार’ के नारे फिजा में तैरने लगेंगे। तब ये बेचारे भोले विपक्षी नेता क्‍या करेंगे।
हो सकता है कि किसी अक्‍ल के अंधे ने इनके कान में ये बात फूंक दी हो कि ऐसा हो गया तो उसका श्रेय आपको मिल जाएगा और चुनावों में इसका सीधा लाभ तुम्‍हें ही मिलेगा, तो जान लो कि ऐसा नहीं होने का।
वो इसलिए कि काजू-बादाम और किशमिश खाकर आंदोलन करने वाले ये वैरायटी किसान उनके जितने भोले नहीं हैं। वो जानते हैं कि कब नेताओं को अपने घड़ियाली आंसुओं में बहा ले जाना है और कब विज्ञान भवन में सरकार के साथ सौदेबाजी के लिए जाना है।
वैरायटी खेती की हो या किसान की, होती बड़े काम की चीज है अन्‍यथा ‘एक ही टोपी’ समूचे विपक्ष को पहनाने की कला हर किसी को नहीं आती।
वैसे राज्‍यों के चुनाव तो 2021 में भी होने हैं और 2022 में भी, ऐसे में तो विपक्ष को वो प्रयास करने चाहिए कि सत्ता पक्ष इसी तरह अपनी जिद पर अड़ा रहे। किसी तरह किसानों की कोई बात मानने को तैयार न हो ताकि पहले तो इन चुनावों में भाजपा को झटके दर झटके दिए जा सकें और फिर 2024 में ऐसा किल्‍ला गाड़ा जा सके कि अगले 70 वर्षों तक भाजपा फिर कुर्सी को तरस जाए।

लेकिन करें तो क्‍या करें विपक्ष के इस भोलेपन का। इस पर हंसे या रोएं, समझ में नहीं आ रहा। समझ में आ रहा है तो सिर्फ इतना कि कैसे मोदी सरकार विपक्ष के भोलेपन का नाजायज़ लाभ अर्जित करती चली आ रही है और कैसे वैरायटी किसानों की ज़ि‍द को भी निजी हित में मोड़ रही है।
अंत में यही समझकर लिखने का अंत करने को मन कर रहा है कि “सबसे भले वे मूढ़, जिन्हें न व्यापे जगत गति”। क्‍योंकि किसी के मुंह से सुना है- अत्‍यधिक भोलापन और मूढ़ता में बहुत अधिक फर्क नहीं है।

-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी