Friday, 23 August 2019

बेचारे ‘खिलाड़ी’ को ‘मदारी’ ने “लॉलीपॉप” दिखाकर बना दिया “बड़े वाला”

बेचारे मियां बड़ी हसरतों के साथ झोली उठाकर अमेरिका पहुंचे थे। सोच रहे थे कि ”दे दाता के नाम तुझको अल्‍ला रखे” की तर्ज पर उससे फरियाद करेंगे और झोली भरकर लौट आएंगे।
उन्‍हें शायद इस बात का इल्‍म ही नहीं था कि अमेरिका में उनका वास्‍ता सृष्टि के जिस जीव से पड़ने वाला है, वह राष्‍ट्रपति होने से पहले बहुत स्‍याना व्‍यापारी भी है। वह उनकी तरह खिलाड़ी नहीं है, मदारी है।
मदारी ने खिलाड़ी को दूर एक लॉलीपॉप दिखाई, और कहा कि यदि तुम तालिबान को हमसे समझौता वार्ता की टेबल पर ले आओ तो वह लॉलीपॉप तुम्‍हारी। लॉलीपॉप देखकर मियां इमरान के मुंह में पानी आ गया। लार टपकने लगी।
टपकती लार लेकर अपने मुल्‍क वापस लौटे तो बोले, ऐसा लग रहा है जैसे विश्‍वकप जीतकर आया हूं।
इधर जब भारत को पता लगा कि मदारी ने खिलाड़ी को उंगली के इशारे से लॉलीपॉप दिखा दी है तो भारत के मुखिया ने सबसे पहले मदारी को दो टूक समझाया।
कहा, देखो जनाब…प्रथम तो हम अपने पड़ोसी की तरह टाइमपास नेता नहीं हैं। और दूसरे गुजराती हैं। अगर राजनीति को व्‍यापार समझने की भूल कर रहे हो तो भी जान लो कि व्‍यापार हमारे रग-रग में बसा है। जिस लॉलीपॉप को दिखाकर तुम मियां इमरान से सौदेबाजी करने में लगे हो, वैसी लॉलीपॉप तो हम चाट-चाट कर फेंक देते हैं।
इतना कुछ कहने के बाद भी भारत को कुछ मजा नहीं आया। संतुष्‍टि नहीं मिली, तो उसने सोचा कि क्‍यों न खिलाड़ी और मदारी दोनों को एक जोर का झटका दिया जाए।
बताया जाए कि कुल जमा चार सौ साल की उम्र वाले एक देश और मात्र 70-72 साल के एक मुल्‍क की सोच पर हजारों साल पुराना भारत कितना भारी पड़ सकता है।
भारत ने एक झटके में लॉलीपॉप की डंडी तोड़ी और उसे नाली में फेंक दिया। जैसे कह रहा हो कि लो अब उठा सको तो उठा लो। अब दोनों मिलकर कचरे में ढूंढते रहना लॉलीपॉप को लेकिन लॉलीपॉप मिलने से रही क्‍योंकि जब तक तुम उसे ढूंढने नाली में उतरोगे तब तक वह गलकर बराबर हो लेगी।
भारत की इस चाल को न तो खुद को खुदा समझने वाला मदारी समझ पाया और न उसकी उंगली पर नाचने वाला जमूरा। एक झटके में सारी स्‍यानपत निकाल दी भारत ने। ऊपर से इस्‍लामाबाद में पोस्‍टर और लगवा दिया कि अब पीओके को संभाल सको तो संभालो। वैसे वो है तो हमारा ही, इसलिए लेकर भी हम ही रहेंगे।
अब बेचारा मदारी अपनी सफाई देने में लगा है और खिलाड़ी को उसके देश में लानत झेलनी पड़ रही है। लोग खुलेआम कह रहे हैं कि मियां… तुमसे ना हो पाएगा।
तुम तो सरकारी आवास को बारात घर बनाने और कबाड़ बेचकर जुगाड़ करने के ही लायक हो। कबाड़ बेचकर अपना घर भले ही चला लेना, पर देश यूं न चला करता। उसके लिए चाहिए अच्‍छा-खासा दिमाग, दिमाग तुम्‍हारे पास है नहीं। ऐसे में लॉलीपॉप को दूरबीन से देख तो सकते हो, लेकिन उसका स्‍वाद चखने को नहीं मिलना।
खैर, अब तो न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम। ऊपर से जलते तवे पर तसरीफ का टोकरा भी रखना पड़ रहा है। जब फुरसत मिले तो किसी कोने में जाकर तसरीफ पर पड़े फफोले चैक कर लेना। फिर बताना कि कितने हैं। मरहम हम भेज देंगे। आहिस्‍ता-आहिस्‍ता मलते रहना तब तक, जब तक कि मियां नवाज शरीफ के बग़लगीर न हो जाओ। खुदा खैर करे।
क्‍योंकि तुम्‍हारे ही लोग अब तो तुम्‍हारे मुंह पर थूककर कहने भी लगे हैं कि तुम्‍हें मदारी ने बड़े वाला बना दिया मियां।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर लेख... वाकई ढोल की पोल खोल दी आपने

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  2. आपने जो लिखा है वो पूरी पोलीटिकल कॉमेडी जैसा लग रहा है। मैं पढ़ते-पढ़ते हँस भी रहा था और सोच भी रहा था कि राजनीति में लोग सच में कैसे-कैसे खेल खेलते हैं। आपने जिस अंदाज़ में “मदारी–खिलाड़ी” वाली बात रखी है, वो पूरी कहानी को और मज़ेदार बना देती है।

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